बहू के अधिकार नहीं छिन सकते
Supreme Court ने हाल ही में बहू के अधिकारों को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। घरेलू हिंसा कानून और वरिष्ठ नागरिक कानून के बीच टकराव के मामले में अदालत ने कर्नाटक हाई कोर्ट के एक आदेश को पलट दिया। यह फैसला बहू के ससुराल में रहने के अधिकार को लेकर किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि महिला को ससुराल के घर से तत्काल बाहर नहीं निकाला जा सकता।
घरेलू हिंसा कानून के तहत महिलाओं का अधिकार
Supreme Court ने अपने फैसले में घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा कानून, 2005 का जिक्र करते हुए कहा कि महिला को ससुराल के साझा घर में रहने का अधिकार है, चाहे उस घर पर उसका मालिकाना हक हो या न हो। अदालत ने कहा कि वरिष्ठ नागरिक कानून, 2007 का सहारा लेकर बहू को घर से निकालने का आदेश नहीं दिया जा सकता।
साझा घर में महिलाओं का हक
इस फैसले के अनुसार, अगर ससुराल का घर साझा संपत्ति है तो महिला को उस घर में रहने का अधिकार सुरक्षित है। Supreme Court ने कहा कि महिला के इस अधिकार को घरेलू हिंसा कानून के तहत मान्यता दी गई है।
वरिष्ठ नागरिक कानून पर Supreme Court का रुख
Supreme Court ने यह भी स्पष्ट किया कि वरिष्ठ नागरिक कानून, 2007 का उद्देश्य माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों को आर्थिक और सामाजिक रूप से सुरक्षित करना है, लेकिन यह कानून महिला के अधिकारों को कमजोर नहीं कर सकता। न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह स्पष्ट किया कि यदि वरिष्ठ नागरिक कानून का इस्तेमाल महिला को घर से बाहर निकालने के लिए किया जाता है, तो यह कानून अपने मूल उद्देश्य से भटक जाएगा।
क्या था मामला?
यह मामला तब शुरू हुआ जब कर्नाटक हाई कोर्ट ने एक महिला को ससुराल का घर खाली करने का आदेश दिया। महिला ने इस आदेश के खिलाफ Supreme Court में याचिका दायर की। मामला यह था कि सास-ससुर ने वरिष्ठ नागरिक कानून, 2007 के तहत शिकायत दर्ज कराई थी और बहू को घर खाली करने की मांग की थी। हाई कोर्ट ने इस शिकायत के आधार पर फैसला सुनाते हुए कहा था कि घर पति की जिम्मेदारी है और महिला को वहां रहने का अधिकार नहीं है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को पलट दिया और महिला के अधिकार को प्राथमिकता दी।
Supreme Court का संदेश
Supreme Court ने कहा कि सीनियर सिटीजंस के अधिकारों की सुरक्षा का मतलब यह नहीं है कि महिलाओं के अधिकारों को नजरअंदाज किया जाए। अदालत ने यह भी सुनिश्चित किया कि दोनों कानूनों के बीच संतुलन बनाए रखा जाए ताकि कोई भी पक्ष अपने अधिकारों से वंचित न हो। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा की दिशा में एक अहम कदम है। यह फैसला न केवल बहुओं को ससुराल में रहने का हक देता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि वरिष्ठ नागरिक कानून का दुरुपयोग न हो।