भारत के सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने मेडिकल एडमिशन (Medical Admission) में मूल निवासी (Domicile) के आधार पर आरक्षण को लेकर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत हर नागरिक को भारत के किसी भी हिस्से में निवास करने, व्यापार करने और पेशेवर कार्य करने का अधिकार प्राप्त है। इस फैसले के बाद अब राज्यों में मेडिकल एडमिशन के लिए स्थानीय निवास प्रमाणपत्र (Domicile Certificate) के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकेगा।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारतीय शिक्षा प्रणाली में एक महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है। यह मेडिकल एडमिशन प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने की दिशा में एक अहम कदम है। अब मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए केवल मेरिट के आधार पर सीटें आवंटित की जाएंगी और मूल निवासी प्रमाणपत्र के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला और इसकी अहमियत
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का सीधा असर उन छात्रों पर पड़ेगा जो मेडिकल एडमिशन के लिए अपने मूल निवास राज्य में आरक्षण का लाभ उठाने की उम्मीद रखते थे। यह फैसला राज्यों की उन नीतियों को चुनौती देता है जो मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए स्थानीय निवास की शर्त लगाती हैं। कोर्ट ने कहा कि संविधान सभी नागरिकों को समान अधिकार देता है और किसी राज्य विशेष में निवास करने के आधार पर मेडिकल एडमिशन में आरक्षण देना अनुचित होगा।
अनुच्छेद 19 के तहत अधिकार
संविधान का अनुच्छेद 19 भारत के हर नागरिक को यह अधिकार देता है कि वह देश के किसी भी हिस्से में रह सकता है, व्यापार कर सकता है और किसी भी पेशेवर कार्य में संलग्न हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रावधान का हवाला देते हुए कहा कि राज्य सरकारें मेडिकल एडमिशन प्रक्रिया में स्थानीय निवास प्रमाणपत्र को अनिवार्य बनाकर नागरिकों के इस मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं कर सकतीं।
मेडिकल एडमिशन में आरक्षण नीति पर असर
यह फैसला उन राज्यों के लिए महत्वपूर्ण है जो मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए स्थानीय छात्रों को वरीयता देते हैं। आमतौर पर, कई राज्य सरकारें अपने निवासियों के लिए मेडिकल कॉलेजों में सीटों का एक बड़ा हिस्सा आरक्षित रखती हैं ताकि स्थानीय छात्रों को प्राथमिकता दी जा सके। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के बाद अब ऐसी नीतियों को बदला जा सकता है और मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन पूरी तरह मेरिट (Merit) के आधार पर होगा।
छात्रों और अभिभावकों की प्रतिक्रिया
इस फैसले के बाद छात्रों और अभिभावकों में मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। जहां कुछ लोग इसे मेडिकल शिक्षा में समान अवसर देने वाला कदम मान रहे हैं, वहीं कई लोग इसे स्थानीय छात्रों के लिए नुकसानदायक बता रहे हैं। अभिभावकों का मानना है कि इस फैसले से उन छात्रों के लिए मुश्किलें बढ़ेंगी जो अपने गृह राज्य में रहकर मेडिकल की पढ़ाई करना चाहते थे, राज्य सरकारें इस फैसले की समीक्षा कर रही हैं और आगे की रणनीति पर विचार कर रही हैं। कई राज्यों में अभी भी मेडिकल एडमिशन में स्थानीय आरक्षण लागू है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के बाद राज्यों को अपनी नीति में बदलाव करना पड़ सकता है।