डीएनए टेस्ट (DNA Test) पितृत्व विवादों, अपराध जांच और चिकित्सा मामलों में एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक उपकरण साबित हुआ है। लेकिन इसे जबरन लागू करने से व्यक्ति की निजता और प्रतिष्ठा प्रभावित हो सकती है। इसी संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि पितृत्व परीक्षण (Paternity Test) से पहले यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इसकी आवश्यकता कितनी अनिवार्य है। बिना पर्याप्त कारण के डीएनए टेस्ट कराना निजता (Privacy) के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है।
पितृत्व विवाद पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने केरल के एक व्यक्ति से जुड़े पितृत्व विवाद की सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि पितृत्व जांच (Paternity Test) के मामलों में अदालतों को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। किसी भी व्यक्ति की सहमति के बिना डीएनए टेस्ट कराना उसके मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) का उल्लंघन कर सकता है।
निजता और प्रतिष्ठा की सुरक्षा का भी रखना होगा ध्यान
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्पष्ट किया कि जबरन डीएनए टेस्ट से व्यक्ति की निजी जानकारी सार्वजनिक हो सकती है। यह उसकी सामाजिक और पेशेवर प्रतिष्ठा (Reputation) को नुकसान पहुंचा सकता है। खासकर अगर यह मामला विवाहेतर संबंधों या बेवफाई (Infidelity) से जुड़ा हो, तो इससे व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव पड़ सकता है।
कोर्ट ने क्यों कहा डीएनए टेस्ट सिर्फ वैज्ञानिक नहीं, बल्कि सामाजिक मुद्दा भी
डीएनए टेस्ट (DNA Test) को आमतौर पर एक वैज्ञानिक और सटीक प्रक्रिया माना जाता है। इसका उपयोग अपराध जांच, चिकित्सा अनुसंधान और पितृत्व मामलों में किया जाता है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि डीएनए टेस्ट सिर्फ एक तकनीकी प्रक्रिया नहीं है, बल्कि इसमें कई सामाजिक और भावनात्मक पहलू भी जुड़े होते हैं। इसलिए अदालतों को ऐसे मामलों में संतुलित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
डीएनए टेस्ट के नियम क्या कहते हैं?
सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाई कोर्ट पहले भी इस विषय पर फैसला दे चुके हैं। भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act), 1872 और आईटी अधिनियम (IT Act), 2000 के तहत व्यक्ति की गोपनीयता को सुरक्षित करने के प्रावधान हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, डीएनए टेस्ट आमतौर पर निम्नलिखित मामलों में किया जाता है:
- पितृत्व जांच (Paternity Test): जब किसी व्यक्ति के बच्चे की पहचान को लेकर विवाद हो।
- अपराध जांच (Criminal Investigation): हत्या, बलात्कार और अन्य गंभीर अपराधों में सबूत के तौर पर डीएनए टेस्ट किया जाता है।
- विरासत विवाद (Inheritance Disputes): संपत्ति विवाद के मामलों में डीएनए टेस्ट का सहारा लिया जाता है।
- चिकित्सा और जैविक अनुसंधान (Medical & Biological Research): अनुवांशिक बीमारियों (Genetic Disorders) और अन्य चिकित्सा मामलों में डीएनए जांच महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि डीएनए टेस्ट सिर्फ उन्हीं परिस्थितियों में किया जाना चाहिए जब यह अत्यंत आवश्यक हो।